आपदाओं के दुष्चक्र में फँस रहा अमेरिका-2
इष्ट देव सांकृत्यायन
[गतांक से आगे]
॥श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नम:॥
वही दौर 2015 में फिर से शुरू हुआ। 2015 तक अमेरिका
एक महाशक्ति बन चुका था। 2015 में राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका के पास एक सधा
हुआ व्यक्ति था – बराक ओबामा। लेकिन याद करें तो आप पाएंगे कि टोर्नाडो, मेगा सुनामी, फ्लैश फ्लड और भूस्खलन की घटनाओं
ने उस साल अमेरिका को एक तरह से घुटनों पर ला दिया था। इसकी शुरुआत भी दावानल से
ही हुई थी और यह आग भी कैलिफोर्निया से ही शुरू हुई थी। 2015 के बाद से ऐसा एक भी
साल नहीं है जब प्राकृतिक आपदाओं में बड़े पैमाने पर लोगों की जान न जा रही हो।
कोरोना की रोकथाम में उनकी व्यवस्था पूरी तरह विफल सबित हुई। यह धौंसबाज अमेरिकी
प्रशासन के लिए शर्म से डूब मरने वाली बात है। तब अमेरिका के राष्ट्रपति यही ट्रंप
महाशय थे। 2020 में अर्थव्यवस्था की हालत यह हो गई थी कि इनका जीडीपी ग्रोथ रेट
माइनस में चला गया था। अशिक्षा, महंगाई और बेकारी बेतहाशा बढ़ी है। फिस्कल डेफिसिट हर साल बढ़ रही है। राष्ट्रीय
ऋण का हाल भी यही है। अमेरिका के कई राज्यों की हालत बद से बदतर होती गई है। खासकर
लुसियाना, मिसिसिपी और वेस्ट वर्जिनिया में
अधिसंख्य आबादी अत्यंत दयनीय हाल में जी रही है। सोशल सिक्योरिटी के तहत खाते में
खैरात न जाए तो लोग खाने बिना मर जाएँ। बेकारी से बड़ी समस्या युवाओं में अयोग्यता
की है। युवा वर्ग की रुचि न तो पढ़ने में है, न कोई काम सीखने में और न ही चर्च जाने में। चर्च वे
केवल तब जाते हैं जब इसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। यह सब ऐसे ही नहीं है। बड़े
गहरे कारण हैं। नशाखोरी की लत के साथ-साथ मनोरोग भी महामारी की तरह बढ़ते जा रहे
हैं। यहाँ बैठे लोगों को यह लगता है कि अमेरिका का इन्फ्रास्ट्रक्चर बहुत बढ़िया
है। लेकिन अगर साउथ कैरोलिना, ओक्लाहामा, लुसियाना या कैलिफोर्निया के छोटे शहरों में चले जाएँ तो आपको बिहार की सड़कें
और पुल अच्छे लगने लगेंगे।
इसका राहु चंद्रमा के घर में बैठा है। चंद्रमा मन के
कारक हैं। स्वयं चंद्रमा से राहु षडाष्टक बना रहा है। नैसर्गिक शत्रु तो उनका है
ही। बुध के साथ होने के कारण वह थोड़ा और मजबूत हो गया है। इसका बहुत बुरा असर
अमेरिका के समष्टि मन या कहें समष्टि चेतना पर होता है। यह छोटे से लेकर बड़े तक हर
व्यक्ति को गलत निर्णय लेने के लिए बाध्य करता है। यही वह कारण भी है जो अमेरिकी
समाज में मनोरोग लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। नवांश में राहु का घर तो नहीं बदला, लेकिन वहाँ यह चंद्रमा के साथ बैठ
गए हैं और वह भी बृहस्पति के नवांश में। इससे एक तरह से गुरु चांडाल योग की छाया
सी बन जाती है। नतीजा यह होता है कि इस दौर में जो बौद्धिक-वैज्ञानिक और तकनीकी या
सामाजिक प्रगति होती है, वह भी अंततः दुर्गति का कारण बनती है। इस बार भी यही होने जा रहा है।
बुध की अंतर्दशा जब तक है तब तक मारक होने के बावजूद
थोड़ी राहत रहेगी। क्योंकि बुध 7वें के साथ-साथ दसवें भाव के भी स्वामी हैं। लेकिन
केतु किसी भाव के स्वामी नहीं होते और अमेरिका की कुंडली में बैठे मारक भाव में
हैं। वह भी प्लूटो के साथ। प्लूटो को हिंदी में यम कहा गया है। यम का अर्थ आप
जानते ही हैं। गोचर में प्लूटो अभी अमेरिका के बारहवें भाव (चंद्रकुंडली) में हैं
और लंबे समय तक वहीं रहेंगे। दूसरी तरफ गोचर में ही यूरेनस चौथे भाव में हैं। यानी
दिसंबर तक सतह पर बगूले उड़ते नहीं दिखेंगे। जनता के भीतर विद्रोह के जो बादल
उमड़-घुमड़ रहे हैं, वे किसी न किसी तरह ऐसे ही उमड़ते-घुमड़ते रहेंगे। लेकिन इसके बाद यह किसी-किसी
शहर में बादल फटने की तरह भयावह रूप में दिखना शुरू होगा। प्राकृतिक प्रकोपों की
गति भी अचानक बढ़ जाएगी। खासकर समुद्रतटवर्ती शहर और जलस्रोतों के आसपास के सारे
क्षेत्र संकट की स्थिति में आ जाएंगे। जल से जुड़ी दूसरी समस्याएँ भी बढ़ेंगी। हो
सकता है कोई नई महामारी आए। इसी बीच सितंबर में दो ग्रहण भी होंगे। ये ग्रहण
प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ समष्टि चेतना पर तमस के प्रभाव को भी और सघन करेंगे।
अक्टूबर 2026 तक अर्थव्यवस्था विकट स्थिति में पहुँच चुकी होगी। अभी जो विशेषज्ञ
ट्रंप को सलाह देना चाहते हैं और ट्रंप उन्हें सुनने को राजी नहीं हैं, अक्टूबर तक वे भी हथियार डाल
देंगे। ट्रंप जी अगर सलाह लेना भी चाहेंगे तो विशेषज्ञ कहेंगे कि हुजूर अब तो
स्टॉक खाली हो गया। वहाँ से उबरने में इसे बहुत समय लग जाएगा। इसे नए सबक सीखने
होंगे। समझना पड़ेगा कि धौंस-पट्टी मध्यकालीन तरीका है। आज की दुनिया में आगे बढ़ने
के लिए एक निकृष्टतम अयोग्यता की तरह इससे पीछा छुड़ाना होगा। किसी भी तरह की
सुप्रीमेसी की सोच कोई मजबूती नहीं, बौद्धिक विकलांगता है। इससे उबरने के लिए अमेरिका को केतु की पूरी अंतर्दशा
में वह सब झेलना पड़ेगा जिसकी कल्पना पहले कभी अमेरिकी जनता ने नहीं की होगी।
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बिहार नहीं, अमेरिका वाले लुसियाना की सड़क है ये |
निश्चित रूप से अमेरिका की इन बदलती स्थितियों से
पूरी दुनिया प्रभावित होगी। वहाँ रह रहे प्रवासी भी। लेकिन प्रवासियों को इन
स्थितियों से घबराने की जरूरत नहीं है। प्रभावित तो सभी होंगे, लेकिन उन लोगों की पूछ बढ़ेगी जो
किसी नवोन्मेषी कार्य में लगे हैं। विशेषज्ञता वाले सभी कार्यों में निष्णात लोगों
की पूछ बढ़ेगी। दूसरी तरफ रुटीन वाले और क्रूड कार्यों में लगे लोगों के लिए
मुश्किलें बढ़ेंगी। यह स्थिति पूरी दुनिया में होने वाली है। वैध या अवैध रूप से गए
ऐसे प्रवासी जो छोटे-मोटे कार्य करके वहाँ अपने पेट भर रहे हैं, उनके लिए बेहतर यही होगा कि वापसी
के बारे में सोचना शुरू कर दें। सरकारों की खैरात बाँटने की प्रवृत्ति भी खत्म
होगी। धरती के प्रभुओं के विशेषाधिकार अतीत की बात होने वाले हैं। लेकिन यह सब
भिन्न विषय है। इस पर अलग से कभी लिखेंगे।
पुनश्च, भारत की मंगल की महादशा भी इसी साल सितंबर से शुरू हो रही है। यह महादशा भारत
के लिए भी बहुत अच्छी नहीं होने जा रही है। संघर्ष बढ़ेंगे। हम पर युद्ध थोपे
जाएंगे और देश के ही कुछ नेता बहुत गंदी भूमिका निभाएंगे। विभिन्न देशों की
महादशाओं पर विचार किया जाए तो हो सकता है, चौंकाने वाले परिणाम सामने आएँ। अभी यह बात मैं केवल
गोचर के आधार पर कह रहा हूँ कि यह पूरी दुनिया के लिए संक्रमण का काल है। मैं नहीं
जानता कि युग परिवर्तन किसे कहते हैं, लेकिन बहुत हद तक समय कुछ ऐसा ही लग रहा है। वे सभी लोग जो प्रकृति को नियंत्रित
करने की कोशिश करेंगे, भुगतेंगे।
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