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Showing posts from April, 2012

एक सवाल

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनाना व्यक्तिगत मामला है. जज बनाना सार्वजनिक मामला कैसे हो सकता है? कृपया संदर्भ-प्रसंग रहित व्याख्या करें.

बाइट, प्लीज ( उपन्यास, भाग-4)

( जस्टिस काटजू को समर्पित , जो पत्रकारिता में व्याप्त अव्यवस्था पर लगातार चीख रहे हैं...) 8 . राष्ट्रीय स्तर पर संचालित ज्यादातर इलेक्ट्रानिक मीडिया कारपोरेट कल्चर में ढली हुई थी , सकेंद्रित पूंजी व्यवस्थित तरीके से इनके नसों में प्रवाहित हो रही थी। इस पूंजी के अनुकूल व्यवहार करने वाले मीडियार्मियों के हाथ में आभासी तौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया की लगाम थी , लेकिन हकीकत में ये लोग खुद अदृश्य इशारों पर थिरकते हुये उनके ज्ञात अज्ञात हितों को साधकर अपने व्यक्तित्व को उड़ान देते हुये उन सहूलियतों को हासिल करने की कोशिश कर रहे थे जिनसे जिंदगी आसान बनती है। राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक मीडिया में लगी पूंजी का माई - बाप सीधे तौर पर दिखाई नही देता था , क्योंकि सबकुछ कारपोरटे के सांचे में ढला हुआ था। अपनी हैसियत से आगे निकलकर कुछ पत्रकारों ने शेयर होल्डर के रूप में मालिकान का दर्जा तो हासिल कर लिया था , लेकिन कारपोरेट के स्थापित रास्तों से इतर जाने की कुव्वत उनमें भी नहीं थी। उत्पादों की तमाम कड़ियां एक - दूसरे से बुरी तरह से गुथकर छद्म रूप में राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक मीडिया में ऊपर के ओहदे पर बैठ

बाइट, प्लीज (उपन्यास, भाग -3)

(जस्टिस काटजू को समर्पित, जो पत्रकारिता में व्याप्त अव्यवस्था पर लगातार चीख रहे हैं...) 6. नीलेश को गेस्ट हाउस पहुंचने में करीब 40 मिनट लग गये। यहां रूट पर आटो चलती थी। एक साथ आठ दस सवारी आटो में बैठते थे। यहां तक कि अगली सीट पर भी चार - चार सवारी बैठते थे। गर्दनीबाग के पास नया ओवरब्रीज बनने के बाद तमाम आटो वहीं से होकर गुजरते थे , चितकोहड़ापुल से इक्का दुक्का ओटो ही जाता था। अलीनगर के पास आटो के इंतजार में ही पंद्रह मिनट निकल गये। बड़ी मुश्किल से एक आटो में उसे आगे की सीट मिली जिस पर पहले से ही तीन लोग सवार थे। ओटो में सवार होते वक्त उसे दिल्ली के आटो की कमी खल रही थी। वहां तो बस आटो में बैठो ओर मीटर चालू करवाओ और जहां जाना है सहजता से पहुंच जाओ। लेकिन यहां मामला दूसरा था। चितकोहड़ापुर पार करने के बाद एयरपोर्ट वाले रोड पर उसे काफी देर तक इंतजार करने के पश्चात पता चला कि इस रूट में ओटो नहीं चलता है। बड़ी मुश्किल से एक मोटरसाइकिल वाले से लिफ्ट लेकर वह गेस्ट हाउस पहुंचा। गेस्ट हाउस में एक बड़ी सी जीप लगी हुई थी जिसपर प्रेस लिखा हुआ था। जीप को देखते ही नीलेश समझ गया कि सभी लोग इसी गे

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