एच-1 बी वीजा फीस बढ़ोत्तरी बनाम अमेरिकी अर्थसंकट

इष्ट देव सांकृत्यायन

एच 1 - बी वीजा की फीस जिस तरह बढ़ाई गई है, यह थोड़े दिन समस्या का कारण भले बन रही हो। लेकिन वास्तव में इसे लेकर भारतीयों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। यह दाँव अंततः अमेरिका पर ही उल्टा पड़ने जा रहा है।

अभी मरी हुई अमेरिकी अर्थव्यवस्था को संजीवनी बूटी सुंघाने जैसा एक टोटका है। बिलकुल वैसे ही जैसे कि 50% टैरिफ वाला टोटका। न वह टोटका काम आया और न ये टोटका काम आएगा। ट्रंप जी को शायद कोई निर्मल बाबा मिल गए हैं, अपनी मर चुकी अर्थव्यवस्था को फिर से जिंदा करने के लिए टोटके बताने वाले।
अमेरिकी निर्मल बाबा की हालत भी शायद बिलकुल अपने निर्मल बाबा जैसी है। न तो उन्हें ज्योतिष आती है, न तंत्र और न ही मनोविज्ञान। बस मीडिया के जरिये एक हाइप क्रिएट की और बन गए बाबा। अपने निर्मल बाबा समोसे के साथ हरी चटनी या गोलगप्पे के साथ मरून कलर वाली चटनी में किरपा अटकी बताते थे। अमेरिका में चटनी तो होती नहीं, तो इनके निर्मल बाबा कभी टैरिफ में किरपा अटका देते हैं और कभी वीजा फीस में।
मालूम उन्हें भी है कि होना इससे कुछ नहीं है, पर संकट में फंसे चेले ने पूछा है तो बताना तो कुछ न कुछ पड़ेगा ही। मालूम ट्रंप जी को भी है कि होना-जाना इससे कुछ नहीं है। लेकिन गले तक कर्ज में डूबे अमेरिका की जनता को दिखना तो चाहिए कुछ होते हुए। वरना कहीं अगर वो भी उसी पर उतर आई, जिस पर उतरने के लिए सीआईए ने अभी हाल ही में नेपाली जनता को उकसाया, तो क्या होगा? हो तो अमेरिका में भी सब नेपो किड्स के लिए ही रहा है।
यह बात ट्रंप जी बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि उनके पास थोड़े से नेपो किड्स है, जो केवल निगोड़ी राजनीति के काम आ सकते हैं। वहाँ कोलेजियम वाली कोर्ट भी नहीं है कि जज लगा देंगे। सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के लिए भी शायद अमेरिका में पढ़ना-लिखना पड़ता है। बहुत जरा से, दाल के नमक से भी कम, वहाँ प्रतिभाशाली युवा हैं। उसका भी एक बड़ा वर्ग भारत की ओर आकर्षित है।
अब बचता है युवाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग, जो भारत के उन युवाओं की तरह है जिन्हें आता कुछ नहीं, लेकिन बनना बड़ा साहब चाहते हैं। पूरी तरह फेको किड्स। उसे भी भारत के एक वर्ग की तरह खाने-पीने के लिए सब कुछ मुफ्त मिल रहा है। नशे के लिए वजीफा भी। तो अब वहाँ काम कौन करेगा?
बस देखते जाइए!

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