Jeet - Haar

गीत 

- हरिशंकर राढ़ी 

किसको समझें जीत आपनी
किसको समझें  हार।
मधुर यामिनी का सुख
बेटा पहले ही पाए
फिर सुहाग की सेज देख
वे उल्टे सो जाएं ।
बंधन तो शरीर  का अच्छा
मन का बँधना क्या
जीवन तो परंपरा विरोधी
इससे सधना  क्या ?
हाट बिके अब सबसे सस्ता
मान - प्रतिष्ठा  - प्यार ।

बहुत ख़ुशी  की बात 
पिताजी चले गए परलोक
अम्मा मान गईं वृद्धाश्रम
अब काहें का शोक  !
कितनी सुखी जिंदगी होगी
जब एकल परिवार
ना कोई रिश्ते का  झंझट
ना कोई दरकार ।
बस अपनी बीवी और बच्चे
क्या सुंदर संसार !

गाँव  गए उम्मीद लगाकर
होंगे सब ‘अपने’
राजनीति से अर्थनीति ने
        बदल दिए सपने
        भीषम बाबा की टिक्ठी को
        उठा रहे मजदूर
        बेटे बैठे अमरीका में
       ‘बेबस’ औ’ ‘मजबूर’।
कैसे गाएँ- "डोली लेकर
आए पिया - कहाँर " ।

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