गज़ल
- हरिशंकर राढ़ी
गाँव में मेरी माँ रहती है
गंगा-सी निर्मल बहती है।
बेटा बहुत संभलकर रहना
आज तलक हरदिन कहती है।
भूखे पेट न सो जाऊँ मैं
उसके मन चिंता पलती है।
मन तुलसी, वाणी कबीर सी
सूरदास का रस भरती है।
सुबह - दोपहर - शाम सरीखी
मधुर चाँदनी-सी ढलती है।
उन सिक्कों को देख रहा हूँ
जिनसे सबकी माँ छिनती है।
रोऊँ भी तो कैसे राढ़ी
रोने कब माँ दे सकती है।
(माँ की चौथी पुण्यतिथि पर, 04 फरवरी , 2014 )
माँ की याद संबल
ReplyDeletethanks a lot Pandey ji.
ReplyDeleteमाँ तो माँ हो होती है जो सदा साथ चलती है विनम्र श्रीद्धांजलि ...
ReplyDelete762C61A32B
ReplyDeletekiralık hacker
hacker bul
tütün dünyası
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