मेरी चीन यात्रा - 10


यात्रावृत्त शुरू से पढ़ने के लिए कृपया देखें : पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठीं, सातवीं, आठवीं एवं नौवीं कड़ी 


मुझे आगाह किया गया था कि चीन में गूगल, वाट्सअप और फेसबुक काम नहीं करतेबस वी चैट अच्छा काम करता है। मैंने चायनीज सिम ले लिया था। वी चैट ऐप पहले से ही मोबाइल में था। उसके द्वारा कुछ चीनी मित्रों से बात की थी तो उन्होंने भी गूगल और अन्य प्रचलित सोशल साइट के चीन में निष्क्रिय होने की बात की थी। हां वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नंबर) के सहारे सब ऐप उपयोग में लाए जा सकते। वीपीएन के लिए तो हम कोशिश नहीं कर सके। यात्रा पर रवाना हो गए।

मगर यह आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई कि कभी कभार वाट्सअप और फेसबुक पर संदेशों का आदान प्रदान हो जा रहा था। खास तौर पर जब हमारे विमान की आपात लैंडिंग चोंगक्विंग अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हुई तो हमने 'साइंस फिक्शन इन इंडिया' के अपने वाट्सअप ग्रुप में भी 'एसओएस' किया था और मित्रों की शुभकामनाएं प्राप्त की थीं। बल्कि कुछ मित्रों ने आश्चर्य भी व्यक्त किया था और पूछा भी कि चीन से वाट्सअप पर संदेश कैसे आ रहा था। यह तो मुझे भी पता नहीं था।

डा. नरहरि ने एक ऐप, ‘बिंगकी जानकारी दी थी जो चीन में चौड़े से चल रहा था। उससे सहायता मिल रही थी। हम जिन कुछ पूर्व परिचित लोगों से वहां मिले उनमें बेल्जियम के प्रालफिक लेकिन क्वालिटी राटर फ्रैंक रोजेर भी थे। उनकी एक कहानी का अनुवाद विज्ञान कथा पत्रिका में छपा था। फ्रैंक घुमक्कड़ भी खूब हैं। पहले भी भारत आ चुके हैं। फिर फिर आना चाहते हैं। उनसे विज्ञान कथा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई। फ्रेंच राटर पियरे गेवर्ट से मुलाकात की चर्चा पहले कर ही चुका हूं। उन्होंने मशहूर फ्रेंच विज्ञान कथा पत्रिका गैलेक्सी में फिर से लिखने के लिए भी आमंत्रित किया।

उधर सम्मेलन में कई समानांतर सत्र चल रहे थे जिनमें विज्ञान कथा के सांस्कृतिक निहितार्थों, वैश्विक स्वरुप, रीजनल साइंस फिक्शन आदि पर विशेषज्ञों के विमर्श के साथ प्रसिद्ध साई फाई फिल्में भी दिखाई जा रही थींं फिल्मों में ब्लेड रनर, पपरिका, द वांडरिंग अर्थ, कास्मोपोलिस और गैलेक्सी अवार्ड की शार्ट फिल्म प्रविष्टियां भी थीं।

आयोजकों ने अंतरराष्ट्रीय विज्ञान कथा साहित्य के साथ ही विज्ञान कथा से जुड़े स्मृति चिह्नों, मेमेंंटो रेप्लिका, गैजेट्स की भी विशाल प्रदर्शनी लगा थी। प्रदर्शनी को देखने के दौरान ही जब मैं चीन के एक उपग्रह का मॉडल देख रहा था एक सुमुखी चानीज बाला ने मुझसे आग्रहपूर्वक बगल के किसी भवन या स्टाल पर चलने को कहा। या क्या कहा कि भाषागत कठिनाइयों से मैं ठीक से समझ नहीं सका। उससे यह कह कर कि मैं ग्रुप के साथ हूं, क्षमा मांग ली। उसने थोड़ा दुखी मन गुड डे कहा और मैंंने भी शुभेचछा प्रगट की और आगे के स्टाल पर बढ़ चला।

भारतीय पुस्तकों के प्रदर्शन का जिम्मा डा. नरहरि ने लिया था और निर्वहन भी प्रशंसनीय ढंग से किया। इसमें हिंंदी लेखकों के साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी का विज्ञान कथा साहित्य प्रदर्शित था। कौन सी पुस्तकें प्रदर्शनी में थीं, इसकी सूची डा. श्रीनरहरि के पास है। संभवतः अनावश्यक विवादों से बचने के लिए वह सूची उन्होंने प्रकाशित नहीं की है।

सभी व्याख्यान या चर्चाएं तो सुनी नहीं जा सकती थीं क्योंकि एक ही समय में वे एक साथ विभिन्न कक्षों में समानांतर चल रहीं थीं। साइबरपंक शब्द से तो हम पहले ही परिचित थे किंतु एक वक्ता फ्रैनसेस्को वेरसो ने सोलरपंक यानि बिगड़ते पर्यावरण से जुड़ी विज्ञानकथाओं के लोकप्रिय होते जाने की चर्चा की। जापानी विज्ञान कथाओं की प्रवृत्ति और उनके सांस्कृतिक पहलुओं पर भी एक व्याख्यान मैने सुना। हार्ड एस एफ विधा का पुनरुत्थान भी एक विषय था। जारी.....


Comments

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Bhairo Baba :Azamgarh ke

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का

आइए, हम हिंदीजन तमिल सीखें