Yatra Manual

 व्यंग्य                      यात्रा मैनुअल

                                                                            -हरिशंकर  राढ़ी

(यह व्यंग्य ‘जागरण सखी’ में प्रकाशित  हो चुका है)
     
 अगर मैं महान दार्शनिकों  और धर्माचार्यों द्वारा स्थापित इस मत को नकार भी दूं कि जीवन एक यात्रा है, तब भी आज की यात्राओं की लंबाई और यात्रियों की संख्या अकूत रह जाएगी। उद्योगी पुरुषों  द्वारा परंपरागत उद्योगों को दरकिनार करके नए-नए उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं। शिक्षा  उद्योग, धर्म उद्योग, प्रवचन उद्योग, वासना उद्योग, रोग उद्योग, फिल्म उद्योग, टीवी उद्योग के साथ-साथ पर्यटन उद्योग खूब विकसित हुआ है। यात्राओं की भरमार हो गई। यात्रावृत्तांतों से साहित्य और इंटरनेट को भर दिया गया। यात्रावृत्तांत एक विधा के रूप में स्थापित हो गया। कुछ बुद्धिमान लेखकों और सलाहकारों ने अपने लेख के माध्यम से यात्रा की तैयारियों और सावधानियों की दीक्षा भी दी। लेकिन सच तो यह है कि यात्रा के लिए निहायत जरूरी वस्तुओं तथा सावधानियों का जिक्र आज तक किसी अखबार या पत्रिका में हुआ ही नहीं, जिसका खामियाजा बेचारा अनुभवहीन यात्री बार-बार भुगतता है। अतः यात्रियों से निवेदन है कि इस यात्रा मैनुअल को ध्यान से पढ़ लें और बिना किसी कुतर्क के इसका पालन करें। इससे यात्रा सुखद होने का थोड़ा-बहुत चांस जरूर पैदा होता है। होना तो यह चाहिए कि टूर ऑपरेटर और पर्यटन विभाग इस मैनुअल को यथाशीघ्र  सर्कुलेट कराएं तथा इसका पालन अनिवार्य कर दें।
       यों तो यात्रा मैनुअल की शुरुआत मुझे हवाई यात्रा से करनी चाहिए, लेकिन जो नियमित हवाई यात्री हैं, उन्हें सलाह देने की हिमाकत करना अपनी सेहत के लिए ज्यादा मुफीद नहीं होगा। काफी पढे़-लिखे और धन-दौलत से ठसाठस व्यक्ति को सलाह देना कुल्हाड़ी पर पैर मारने के बराबर है। हां, पैसे की कीमत गिरने का एक दुष्परिणाम  यह जरूर हुआ है कि ‘घटिया श्रेणी’ के लोग भी हवाई जहाज में घुसने का कुत्सित प्रयास करने लगे हैं और पुश्तैनी  यात्रियों की शान  में बट्टा लगाए जा रहे हैं। इन नौसिखिया हवाई यात्रियों के लिए एक-दो बातें बताना यहां परमधर्म होगा जिससे यात्रा के दौरान जगहंसाई न हो। यह बताने की जरूरत नहीं कि हवाई जहाज में खाद्य पदार्थो की कीमत भी पूरी तरह हवाई होती है और जैसे-जैसे हवाई जहाज ऊपर जाता है, कीमतें भी ऊपर चढ़ती जाती हैं। अब जो यात्री हवाई यात्रा का टिकट किसी संगठन, मिशन  या सरकारी कमीशन  के अनुग्रह से प्राप्त करते हैं, उनके लिए खाद्यपदार्थों की ऐसी कीमतें जानलेवा साबित हो सकती हैं। ये इस बात को समझते हैं और कई बार अपने हैंडबैग में मोहल्ले की दूकान के पैकेट ठूंस कर चलते हैं। इस वर्ग की माताएं-बहनें (जो या़त्रा के समय ‘मैडम’ हो जाती हैं) तो आलू के परांठे या पूड़ी-सब्जी रखना नहीं भूलतीं। मगर हवाईयात्रा में यह महापाप है। यदि जहाज के अन्दर आपने ये पौष्टिक पदार्थ खोल लिए तो आपकी यात्रा का सत्यानाश हो गया और आप फ्लाइट में बैठकर भी स्लीपर की मानसिकता और अनुभूति से ऊपर नहीं उठ सके। लिहाजा, बड़ा बनने का अवसर मत चूकिए। सत्तर रुपए की पानी की बोतल और एक सौ बीस रुपए की कॉफ़ी  का आनन्द जरूर लीजिए। एअर होस्टेस की नजरों में ऊंचा बनिए और सहयात्रियों में अपना कद बढ़ाइए !
         रेलवे के प्रथम श्रेणी वातानुकूलित पर भी उपरोक्त नियम चिपकता है। उसमें चलने वाला आदमी श्रेष्ठ  होने के साथ-साथ प्रायः सरकारी अफसर होता है और उसकी बुद्धिमत्ता का प्रमाणपत्र लोक सेवा आयोग पहले ही जारी कर चुका होता है। चूंकि जो किराया इस श्रेणी का है, उससे कम में कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति हवाई जहाज में यात्रा कर सकता है, बशर्ते  पैसा उसकी जेब से न  लग रहा हो । क्योंकि सरकारी नियम ही ऐसे हैं कि सरकार इस श्रेणी के लिए अधिक किराए का भुगतान कर देगी, पास जारी कर देगी, लेकिन उससे कम रकम का भुगतान हवाई जहाज के लिए नहीं करेगी (उसकी नजर में ट्रेन का किराया कम और हवाई जहाज का ज्यादा होता है और प्राइवेट एअरलाइंस तो ज्यादा वसूलती ही हैं), इसलिए बहुत से अधिकारियों को मन मारकर इस क्लास में यात्रा करनी पड़ जाती है। वरना, कौन ऐसा हुआ है कि  महीनों  पहले आरक्षण के लिए डोलता फिरेगा?
     द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित से यह यात्रा मैनुअल ज्यादा प्रभावी होता है। इस श्रेणी में वे लोग आने लगे हैं जो अभी आसन्न भूत में स्लीपर क्लास में यात्रा करते थे। चूंकि हर श्रेणी का यात्री अपने से नीचे वाले क्लास को पूरा पशु  मानता है , इसलिए उसका प्रयास होता है कि वह अपनी यात्रा का क्रम ऊपर की श्रेणी की ओर जारी रखे। इस क्लास में यात्रा करने वाला स्वयं को प्रथम श्रेणी के तुल्य और उसके समीप पाता है जिससे उसका मनोबल बढ़ता है। दिक्कत तब होती है जब ऊपर वाली बर्थ मिलती है क्योंकि तब उसे लगता है कि उसे केवल छत मिली है और पूरा ग्राउंड फ्लोर लोअर बर्थ वाले का है। अतः यात्री को यह प्रयास करना चाहिए कि येन-केन प्रकारेण उसे नीचे वाली बर्थ ही मिले। इस श्रेणी में भी घर से लाया खाना नहीं खाना चाहिए और रेलवे कैटरिंग द्वारा एल्युमिनियम फाॅइल में पैक सुदर्शन  खाना जरूर खरीदना चाहिए। पसंद तो नहीं ही आएगा, सो थोड़ा-बहुत चखकर शिकायत सहित फेंक देने में ही भलाई है। इससे स्वास्थ्य और सम्मान दोनों में वृद्धि होगी।
      ए.सी. थर्ड में यात्रा करने वाले प्राणी को ज्यादा कुछ नहीं करना है। उसे चाहिए कि वह ए.सी. प्रथम और द्वितीय के नियमित सफारिस्टों की नकल करने की कोशिश करे। उसे चाहिए कि यात्रा प्रारंभ से पूर्व कई जेबों वाला एक बरमूडा खरीद ले और ऊपरी अर्धांग के लिए मिसमैच करती हुई या लिप्यांकित बनियान खरीद ले। ध्यान रहे कि इस बनियान के ऊपर गलती से भी कुछ नहीं पहनना है। अंगरेजी का संक्षिप्त स्पीकिंग कोर्स भी उसके लिए आवश्यक है। उसे यह सोचना चाहिए कि वह भी अभिजात वर्ग में शामिल  हो गया है, भले ही बिरादरी से बाहर हो। मानसिकता में इस प्रकार का परिवर्तन होना चाहिए कि इससे नीचे के दर्जे में यात्रा करने वाले धरती के बोझ हैं। उसकी सोच कुछ इस प्रकार की होनी चाहिए जैसी कि सवर्णों में निचले स्तर के सवर्ण या पिछड़ों में अति पिछड़ों की होती है। एक बार बोगी में घुसकर उसे यह जरूर कहना चाहिए कि रश बहुत है और इस क्लास में सफर करने लायक नहीं है। पर क्या करें, रेलवे के नियमों और अचानक आ पड़ी जरूरत का, जिसके कारण इस भेडि़याधसान में यात्रा करनी पड़ रही है !
         यात्रा का असली मैनुअल स्लीपर क्लास से शुरू होता है। इस क्लास के लिए विशेष तैयारियां करनी पड़ती हैं। यात्रा से पूर्व शारीरिक और मानसिक क्षमता को विकसित किए बिना यहां यात्रा नहीं हो सकती। ज्ञानियों और तत्त्वदर्शियों  ने कहा है कि मनुष्य को आने वाली विपत्ति और कष्ट  के लिए तैयार रहना चाहिए। तो अब तैयार हो जाइए। न जाने क्या हो जाए? गुनगुनाते रहिए- इस पार प्रिये, मधु है, तुम हो; उस पार न जाने क्या होगा ! मानसिक रूप से तैयार हो जाने के बाद शरीर यात्रा के अनुकूल बन जाता है। कुछ कमी हो तो योग और ध्यान का अभ्यास कर लीजिए।
       वैसे एक नियम तो प्रत्येक श्रेणी की यात्रा पर लागू होता है। वह यह है कि आप अपनी हर यात्रा को अंतिम यात्रा मानकर चलें। कौन पता कब इस नगरी में फिर हो तेरा आना ! सो कूच करने से पहले अपने सगे-संबधियों को निहार लें। अगर आपके अंदर मोहग्रस्त अर्जुन वाला भाव आ जाए तो उसका निरादर न करें। उस पर पुनर्विचार की आवश्यकता  है। अपने साथ ऐसा कोई गोपनीय रहस्य लेकर न जाएं जिससे कुटुम्बियों को आर्थिक नुकसान हो या वारिसाना हक में जंग का सामना करना पड़े। सारा इंतजाम करने और परलोक तक की सोच लेने के बाद भी आप सकुशल वापस आ जाएं तो स्वयं को निर्विवाद भाग्यशाली  मान लें और ईश्वर  के अस्तित्व पर उठने वाले हर प्रश्न  को कचरा समझकर फेंक दें।

(शेष अगली किश्त में----)

Comments

Post a Comment

सुस्वागतम!!

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Bhairo Baba :Azamgarh ke

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का

आइए, हम हिंदीजन तमिल सीखें