परसाई जन्मोत्सव

गत दिनांक 22 अगस्त 2009 को व्यंग्यशिल्पी स्वर्गीय हरिशंकर परसाई की कर्मभूमि जबलपुर शहर उनकी याद में सरावोर रही .

विवेचना और प्रगतिशील लेखक संघ के तत्वाधान में शहर के रानी दुर्गावती संग्रहालय कला वीथिका में एक आयोजन किया गया . इस अवसर पर दिल्ली से पधारे मुख्या वक्ता लेखक विष्णु नागर ने कहा – हिन्दी कहानी और उपन्यास की लेखन शैली में बदलाव के लिए जैसे प्रेमचंद को याद किया जाता है , उसी तरह व्यंग्य की दुनिया को बदलने का योगदान हरिशंकर परसाई को जाता है .

इस अवसर पर सर्वप्रथम श्री वसंत काशीकर ने परसाई की चर्चित कृति ‘संस्कारों और शाश्त्रों की लडाई’ के एक अंश का वाचन किया . तत्पश्चात डा. अरुण कुमार ने परसाई के व्यक्तित्व, लेखन शैली और रचनाओं पर प्रकाश डाला . इस कार्यक्रम की अध्यक्ष्त डा. मलय ने की और अपने वक्तव्य में परसाई के साथ बिताये पलों को याद किया .

शहर के नई दुनिया संस्करण के कार्टूनिस्ट राजेश दुबे ने परसाई जी की रचनाओं पर आधारित कार्टून्स की प्रदर्शनी लगाई . विवेचना रंग मंडल के कलाकारों द्वारा परसाई की प्रसिद्द कृति ‘इंसपेक्टर मातादीन’ का खूबसूरत मंचन खुले मैदान पर किया गया .

कुल मिलाकर एक यादगार शाम परसाई के नाम रही . बड़ी संख्या में शहर के ख्यातिलब्ध साहित्यकार उपस्थित थे . इनमे मुख्या है ज्ञानरंजन [कथाकार ], कुंदन सिंह परिहार [कथाकार ], गुरुनाम सिंह रीहल [लघुकथाकार ]।

इस आयोजन में कुछ बातें जो सामने आई वो निम्नानुसार हैं .

१ आज लेखकों की गुटबाजी चल रही है । वे आपस में एक दुसरे की तारीफ़ करते हैं और किसी तीसरे की दाख्लान्दजी पसंद नहीं करते ।
२ कुछ बड़ी पत्रिकाओं में भी यही आलम है इसलिए वे दम तोड़ रहीं है । हर अंक एक सा । नए लेखकों की भागीदारी उनमे नहीं है .
३ हम निरंतर लिखें और बस लिखें निस्वार्थ ।

इस अवसर पर अनोपचारिक चर्चा में एक प्रश्न उभर कर सामने आया – ब्लॉग्गिंग -ब्लॉग्गिंग एक साहित्यिक ऐय्याशी है ।

हलाँकि ये बात इस आयोजन का हिस्सा नहीं है लेकिन महत्वपूर्ण है । इसलिए ये बात यदि आप सबसे न बांटूं तो तकलीफ में रहूँगा . अतः इस ब्लॉग पर आने वाले तमाम पाठकों का आव्हान करता हूँ की वे अपने विचार प्रतिक्रिया स्वरुप दे -

ब्लॉग्गिंग एक साहित्यिक ऐय्याशी है !

Comments

  1. "ब्लॉग्गिंग एक साहित्यिक ऐय्याशी है !"

    मतलब यह कि हम ऐय्याशी कर रहे हैं.
    ऐय्याश ब्लॉगर! या ब्लॉगर ऐय्याश?

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  2. ....kuchh had tak sir... par har sikke do pehlu hote hain na... :)
    just we are looking at the bright side... shoudn't we all ?

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  3. यूं तो साहित्य ही अपने आप में ऐयाशी है. ख़ासकर हिन्दी में जिसे जनवादी साहित्य कहा जाता है, उसे कोई आमजन तो नहीं समझ पाता, अब ख़ास समझता हो तो अलग बात है. फिर इसे क्या कहेंगे? कुछ ऐसा ही ब्लॉगिंग में भी हो रहा है.

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  4. ब्लॉग्गिंग एक साहित्यिक ऐय्याशी है ।


    -यह तो चर्चा का विषय है, इसे बढ़ाया जाये.

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  5. ब्लॉग्गिंग एक साहित्यिक ऐय्याशी है ??

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  6. नही, ब्लॉग्गिंग एक साहित्यिक ऐय्याशी नही है,
    यह तो एक आदत है।

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  7. ब्लागगिंग एक साहित्यिक अय्यासी ?????
    यह विचार किनका (किस वर्ग का-ब्लॉगर या साहित्यकार का) है, कृपया बताएं...तभी इसपर कुछ कहा जा सकता है...

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  8. कुछ साहित्यिक ऐय्याश ब्लॉगिंग में भी गाड़ रहे हैं तम्बू। अभी तो फुटपाथ पर "शिव-शक्ति खानदानी दवाखाना" छाप तम्बू है। पर भविष्य में उन्हें उसी छुद्रता का विस्तार नजर आता है जैसी साहित्यजगत में चलती आई है।
    बाकी, इस समय जो ढंग की ब्लॉगिंग कर रहा है; वह साहित्यकार ही नहीं है; और ऐय्याश तो कतई नहीं।

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  9. व्यंग्यकार परसाई जी पर आपकी रिपोर्ट अच्छी लगी. यह सच है कि हिन्दी में व्यंग्य को सम्मान दिलाने का श्रेय परसाई जी को ही जाता है. कुछ “ऊंचे कवि और कथाकार “ अभी भी वयंग्य को हिन्दी साहित्य में नाज़ायज़ संतान मानते है जैसे ये उनके पैत्रिक सम्पत्ति में हिस्सा बांट रहे हों. साहित्यिक ऐय्यासी पर शायद सबसे अच्छा कमेंट परसाई जी ही दे सकते थे.

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