vyangya

व्यंग्य
माइ डैड

मैं उसका नाम नहीं जानता ।जरूरत ही नहीं पड़ी ।उम्र बीस के आसपास होगी। एक दो साल कम या ज्यादा । पता नहीं कहाँ रहता है ।कहीं भी रहता होगा । ऐसे लोग हर जगह हैं ।उसके पिता का नाम ए.टी.एम. है । मैंने उससे पिता का नाम पूछा नहीं था । यह उसकी बनियान पर लिखा था । बनियान किसी कुर्ते कमीज़ या टीषर्ट के नीचे नहीं थी । उसके नीचे जाने की मेरी जुर्रत नहीं!उसने बस पहना ही यही था ।रंग बिलकुल काला! एकदम गहगह! मैं बनियान की बात कर रहा हूँ ,उसकी नहीं। वह तो गोरा चिट्टा था।बिलकुल देषी अंगरेज! धनाढ्य , क्योंकि अजूबे करने का लाइसेंस धनाढ्य के पास ही होता ही है !गोरे गदराए बदन पर काली धप्प बनियान।अच्छा कन्ट्रास्ट था ।
काले रंग का बोलबाला है।बस षरीर का रंग काला न हो।कृष्णवर्ण अमान्य है, कृष्णकर्म स्तुत्य है।कृष्णकर्म से द्वापर युगीन कृष्णवत कर्म का तात्पर्य यहाँ नही है।कालाधन एवं काला मन आर्थिक एवं बौद्धिक विकास का अकाट्य लक्षण है।कालिमा का यह तालमेल नया है।पहले कालावस्त्र विराध एवं ष्षोक प्रदर्षनार्थ ही मान्य था।जल्लाद वर्ग का युनीफार्म कुछ ऐसा ही था।धर्मग्रस्त मानसिकता में यमराज और भूतप्रेतों को भी काले वस्त्रों में ही स्वीकार किया गया था।कुछ लोग बिजूके को भी कृष्णवर्ण का ही परिधान प्रदान करते थे।अब बदलाव आया है और काला उत्तरीय सुन्दरता का प्रतिमान बना है।
मैं उसकी बनियान पर अंकित अभिलेख की बात कर रहा था।अंगरेजी के ब्लाॅक लेटर्स मे लिखा था..- माइ डैड इज ए.टी.एम. । मेैं प्रभावित हुआ।अभी तक आरोप लगाया जाते थे कि आदमी मषीन हो गया है।विचारधारा में परिवर्तन आया है।आरोप को अब सामाजिक मान्यता मिलने लगी है।पिताजी अब ए.टी.एम हों चुके हैं , यह बात सगर्व कही जा रही है -सीना ठोंककर।डैड अत्याधुनिक मषीन हो चुके है।पैसा देने के काम आते हैं।जब चाहें तब पैसा। राउण्ड द क्लाॅक।ट्वेण्टी फोर इन्टू सेवेन!
जब तक खुद दो पैसे न कमा सकें,ए.टी.एम. की जरूरत पड़ती ही रहती है।न जाने कब कौन सी आवष्यकता आन पड़े।कहीं गर्लफ्रेण्ड का फोन आ जाए-डेटिंग के प्रस्ताव स्वीकृति,कहीं काॅकटेल ड्यू हो जाए या सिगरेट वगैरह खत्म हो जाए।ऐसे षुभअवसरों का आनंन्द दूसरों की कमाई से ही लिया जा सकता है।अपने कमाए और खर्च कर दिए- स्वाद क्या खाक आएगा ?डैड की कमाई हो तो पूछना ही क्या?स्वाद एवं रुतबा दोनो ही हासिल!
डैड पहले ए.टी.एम. नहीं थे।भुगतान तब भी करते थे मगर मैनुअली।मैनुअल तरीके में तकलीफ होती है।क्लर्क हो या कैषियर,एक बार आपको घूरता जरूर है।उसे लगता है कि आप अपने पैसे निकालकर गुनाह कर रहे हैं।कम रकम निकालते हैं तो हिकारत की नजर से देखता है और ज्यादा निकालते हैं तो संदेह की नजर से। ए.टी.एम. में ऐसी बात नहीं है।आपका स्वागत करेगा।उसे तकलीफ नहीं होती।डैड को भी अब नहीं होती।आदत पड़ गई है। उनका काम पैसे गिनकर बाहर निकाल देना है।नोट भी बड़े -बड़े, राउण्ड फिगर में!चिल्लर का भुगतान बिलकुल नहीं।बस मषीन मे पैसे होने चाहिए।
ए.टी.एम. में पैसे डालने पड़ते हैं।डैड वाले ए.टी.एम.में लोग करेंसी डाल जाते हैं।बड़े अधिकारी हैं। लोग जमा करा जाते हैं।आहरण की व्यवस्था लम्बी है।कई विभागों से क्लीअरेंस आता है।वितरण लम्बा नहीं है।कुल तीन ग्राहक है।ए.टी.एम. डैड का बेटा, बेटी एवं भार्या। बेटे का करेण्ट एकाउण्ट है,बाकी दोनों का सेविंग।बेटी का खर्चा ज्यादा नहीं है। कभी-कभी ही विदड्रा करती है-लिप्स्टिक , क्रीम एवं अन्तर्वस्त्रों के लिए। सिनेमा, रेस्टोरेण्ट, क्लब और अन्य भुगतान के लिए दूसरे ए.टी.एमों के बेटे हैं।वे तो उसकंे लिप्स्टिक , क्रीम एवं अन्तर्वस्त्रों को खरीदने में जीवन को सफल मानते हैं। अब वे उसे पर्स मे हाथ ही नहीे डालने देते।
साहब नहीं होते तो जमाकर्ता श्रीमती जी की ब्रांच में जमा करा जाते है।वे राषि के अनुसार बट्टा काटकर षेष राषि ए.टी.एम. में लोड कर देती हैं।कभी-कभी केवल बाउचर ट्रांसफर कर देती है।बस एंट्री होना जरूरी है।
अभी भी कई बार ए.टी.एम. भुगतान करने से मना कर देता है।फिर उन्हें कई बार ट्राई करना पड़ता है।बिना पासवर्ड के प्राॅसेसिंग नहीं होती है।तब मम्मा पासवर्ड का काम करती हैं।इस पासवर्ड को ए.टी.एम. रिफ्यूज नहीं कर सकता, भुगतान करना पड़ता है।
डैड को मालूम है कि जब तक भुगतान जारी है, ए.टी.एम. का बोलबाला है।करेन्सी खत्म ,महत्त्व खत्म! बिजली काconnection भी कट जाएगा।रंगीन स्क्रीन लिए बैठे रहो।कितना भी आधुनिक क्यों न हो, ए.टी.एम. और ग्राहक अपने ही देष का है। मषीन नहीं चली तो जो भी जाएगा ,अगल-बगल से ठोंकेगा जरूर!क्या पता कोई तार वार ढीली वीली हो।ठोंकने से अपनी कबाड़ा मषीनें भी चल देती हैे, फिर यह तो आधुनिक मषीन है।इसमें दिमाग भी है।पैसे गिनना और हिसाब लगाना भी जानती है।
डैड ए.टी.एम. भुगतान का प्रिंट नहीं देती।प्रिंटर है लेकिन उसमें पेपर नहीं है।ए.टी.एम. के ये तीनों ग्राहक प्रिंट की आवष्यकता नहीं महसूस करते ।षुरू में एक रोल पड़ा था।कुछ दिन चला। न तो किसी ने प्रिंट लिया और न नया रोल डाला।अब एडजस्ट हो गया है।
कभी- कभी डैड भी खुष हो लेते हैं।बेटा कम से कम इतना तो सम्मान कर रहा है कि सार्वजनिक रूप से स्वीकार तो कर रहा है कि वे ए.टी.एम. तो हैं। यह उद्घोषणा इतना तो बताती है कि वे अपार धनी हैं,उदार दाता है वरना उनके अपने पिताजी पैसे भी नहीं देते और डाँट भी लगाते थे - बिलकुल ऋण खातेदार की तरह। काष! इस ए.टी.एम. के डैड भी ए.टी.एम. होते!

Comments

  1. आज की यह सही कहानी है, ओर आप ने बहुत सुंदर ढंग से लिखा.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. सही है-

    काश! इस ए.टी.एम. के डैड भी ए.टी.एम. होते!


    --:)

    ReplyDelete
  3. बढियां लिखा है आपनें .यही वर्तमान दौर है .

    ReplyDelete
  4. बस एक दिक्कत है .आजकल ए टी एम् नकली नोट भी देने लगा है....जो क्लर्क से आप बदलवा सकते है ...कभी आपकी सूरत पसंद नहीं आये तो नोट नहीं देता.....

    ReplyDelete
  5. हुम्म्म! बेचारे डैड की असली औकात तो यही है.

    ReplyDelete

Post a Comment

सुस्वागतम!!

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Bhairo Baba :Azamgarh ke

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का

आइए, हम हिंदीजन तमिल सीखें